Priyanka06

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लेखनी कविता-13-May-2022 जवानी की बेड़िया

रचयिता-प्रियंका भूतड़ा

शीर्षक-जवानी की बेड़ियां

जवानी की बेड़ियां, कुछ होती है ऐसी
कुछ चाहा कर भी नहीं कर पाते हम
क्या करेगी दुनिया, इसी सोच में रह जाते हम
हर सपने जवानी में दब कर रह जाते अब
हम बड़े हुए तो क्या हुआ-२
बच्चे बनकर मुस्कुराए नहीं
हम बड़े हुए तो क्या हुआ-२
बच्चों की तरह खिल खिलाए नहीं
पैरों में होती है ऐसी
जवानी की बेड़ियां
हम हवा में उड़ना चाहे
पर चाह कर भी उड़ ना पाए
हम अपनी बातों को समझाना चाहे
पर चाहा कर भी कह ना पाए
होती है यही ,जवानी की बेड़ियां
हो गए हम बड़े, यही हमें समझाते
बच्चे बनकर मुस्कुराओ मत तुम
हम खिलना चाहे फूलों की तरह
पर भंवरों के डर से ,खिलना छोड़ दे हम
बादल की तरह बरसना चाहे हम
पर सूखे के डर से, बरसना छोड़ दे हम
यही होती है ,जवानी की बेड़ियां
चिड़ियों की तरह उड़ना चाहे हम
पर शिकारियों के डर से, उड़ना छोड़ दे हम
हम बड़े हैं तो क्या हुआ
बच्चे बनकर खिल खिलाए नहीं
क्या यही होती है ,जवानी की बेड़िया
अपना कुछ नहीं कर पाते हम
दूसरों के लिए करते, जैसे हम
यही है जवानी की बेड़ियां


नॉनस्टॉप प्रतियोगिता-५ भाग

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12 Comments

Farida

16-May-2022 08:16 PM

👌👌

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Neha syed

16-May-2022 07:39 PM

Nice

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Haaya meer

16-May-2022 07:08 PM

Very nice

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